लघु कथा
माध्यम
पवित्रा अग्रवाल
प्रशासनिक अधिकारी सुभाष ने खिड़की के बाहर देखते हुए अपनी पत्नी से कहा--
"स्मृति सुनो कुछ लोग गेट से अंदर आ रहे हैं,मुझे पूछें तो कह देना घर पर नहीं हैं।'
"ठीक है '
"हाँ कहिये...किस से मिलना है ?'
"मैडम हम सुजाता स्कूल से आए हैं ।पुरस्कार वितरण सामारोह में मुख्य अतिथि बनाना चाहते हैं।'
"लेकिन मेरे पति तो अभी घर पर नहीं हैं।'
"हम आपको अतिथि बनाना चाहते हैं।'
"अरे नहीं मुझे ऐसे प्रोग्रामों से क्या लेना देना।मैं तो एक घरेलू महिला हूँ।मेरे पति एक अधिकारी हैं ,बनाना है तो उन्हें बनाऐ।'
"हर कामयाब पति की सफलता के पीछे उसकी पत्नी का हाथ होता है।...आप अपने को कम मत आँकिए ।हम सब आपको ही मुख्य अतिथि बनाने की इच्छा ले कर आये हैं।'
"ठीक है मुझे तारीख और समय बता दीजिये . एक-दो दिन का समय भी दें यदि उस दिन मैं फ्री हुई तो आपको फोन पर स्वीकृति दे दूँगी ।'
"थैक्यू मैडम हम परसों इसी टाइम आपको फोन कर लेंगे।'- कह कर वह लोग चले गए ।
पति ने राहत की साँस लेते हुए कहा--"स्मृति अच्छा किया तुम ने टाल दिया ,ये लोग मुझ से कुछ कराना चाहते हैं...सही होता तो मैं वैसे ही कर देता ....कई सिफारिशें आ चुकी हैं... .अब शायद तुम्हें माध्यम बनाना चाहते हैं।'
अच्छा किया
लघु कथा
अच्छा किया
पवित्रा अग्रवाल
बहुत दिनों बाद एक अच्छी काम वाली पा कर तनाव मुक्त हो गई थी।पर रोज सुबह आठ बजे तक आ जाने वाली लक्ष्मी दस बजे तक नहीं आइ थी...मैने बर्तन मॉजना शुरू ही किया था कि सिर पर पट्टी बाँधे वह सामने खड़ी थी --
-"हटो अम्मा हम साफ करते '
"अरे ये क्या हुआ... कहीं गिर गई क्या ?'
"नही अम्मा ..... रात में वो बच्चियों का नान्ना ( पिता ) गाँव से आया,वोइच झगड़ा किया।'
"उसी ने मारा ?'
"हौ अम्मा'
"क्यों मारा ?'
"अब क्या बोलूं अम्मा। एक छोटी सी कोठरी मे हम लोगाँ रहते,बाजू मे दो जवान बेटियाँ सोतीं। उसको नजदीक नही आने दी ... तो बोत गुस्से मे आ गिया...बच्चियों की भी शरम नही किया, बोला- "बहनो के मरद से काम चल जाता हुँगा, अब अपने मरद की क्या जरूरत'...दिल तो किया अम्मा कि उसका मुँह नोच लूँ पर बच्चियो के कारण मुँह सिल ली। मेरे कु उसका आना जरा भी पसंद नहीं ।'
"लक्ष्मी तेरा मरद है, तुझ से शादी की है उसने.. तेरे पास नही आयेगा तो किस के पास जायेगा ?'
"अरे अम्मा उसका चरित्तर आप को नहीं मालुम ,सारे ऐब हैं उसमें फिर शादी का मतलब बस यहीच होता अम्मा...जोरू और बच्चो के लिये उसका कोई फरज नही ? उसके लक्षन अच्छे होते तो हम गॉव से इस सहर मे काहे को आते। ...दो कोठरी का घर था, उसे भी बेच के खा गया। अम्मा दो औरत बच्ची हैं। इनका भी तो घर बसाना न।'
"हाँ सो तो है...फिर क्या हुआ ?'
सुबह होतेइच मेरे कू खीच के हमारी अक्का ( बहन ) के घर को लेके गया ...अक्का और उसके मरद को गलीच-गलीच बाताँ बोला और मेरे कू वहींच मारना चालू किया फिर हम और अक्का मिल के उसको चप्पल से मारे।....अम्मा पहली बार हम उस पर हाथ उठाये....पर क्या करते....?"
तभी उसकी बेटी आगयी-"अम्मा यह काम तो तुझ को बोत पहले करना था....आज तक वह हमारे या तेरे वास्ते क्या किया ? हम लोगाँ मेहनत से कमाते और वो जब भी आता मार पीट के पैसे छीन के ले जाता... ..तूने कुछ भी गलत नही किया..जो किया अच्छा किया।'
लघु कथा
डुकरिया
पवित्रा अग्रवाल
ससुराल से पीहर आई बेटी से वहाँ के हाल चाल पूछते हुए माँ ने पूछा -- "तेरी डुकरिया के क्या हाल हैं ?'
"कौन डुकरिया माँ ?'
"अरे वही तेरी सास ।'
"प्लीज माँ उन्हें डुकरिया मत कहो ...अच्छा नहीं लगता ।'
"मैं तो हमेशा ही ऐसे कहती हूँ, इस से पहले तो तुझे कभी बुरा नहीं लगा...अब क्या हो गया ?'
"इस डुकरिया शब्द की चुभन का अहसास मुझे तब हुआ जब एक बार अपनी सास को भी आपके लिए इसी शब्द का स्तमाल करते सुना था...यद्यपि उन्हों ने मेरे सामने नहीं कहा था।'
जो राम रचि राखा
लघु कथा
जो राम रचि राखा
पवित्रा अग्रवाल
"बेटा यह शादी नहीं हो सकती ।'
"क्यों पापा ? वह हमारी जाति की नहीं है,इस लिए ?'
"एक कारण यह भी हो सकता था पर तुम्हारी खुशी के लिए हम इस शादी के लिए तैयार हो गए थे। पर तुम दोनो की जन्म पत्री नहीं मिल रही है।पंडित जी ने कहा है कि लड़की के भाग्य में वैधव्य का योग है... इसलिए उन्होंने इस विवाह से इंकार कर दिया है और यह बात सुन कर हम भी हाँ कैसे कर सकते ?'
"पापा हमारा पढ़ा लिखा परिवार है... इन दकियानूसी बातों पर आप विश्वास करते हैं ?
"हाँ बेटा इस में तो हम विश्वास करते हैं।'
पापा यदि ये पंडित ऐसे किस्मत पढ़ सकते तो इनके परिवार में कोई बेटी या बहू विधवा नहीं होती। ... आपको तो पता है न कि पिछले वर्ष ही इन पंडित जी की बेटी शादी के एक साल बाद ही विधवा हो गई थी।क्या इन्होंने कुंडली नहीं मिलाई होगी ?'
"बेटा तू बहस बहुत करता है।'
"पापा मैं बहस नहीं कर रहा, सच्चाई के उदाहरण दे कर आप को ऐसे बेतुके अंधविश्वासों से बचाने की कोशिश कर रहा हूँ। ...प्लीज पापा ।'
"ठीक है बेटा दिल पर पत्थर रख कर स्वंय को यह कह कर समझा लेंगे कि होवत वही जो राम रचि राखा ।'
" थैंक यू,यह हुई न मेरे पापा वाली बात '
वाह देवी माँ
लघु कथा
वाह देवी माँ
पवित्रा अग्रवाल
"मिसेज गुप्ता कुछ सुना आपने...मिसेज नन्दा बुरी तरह जल गई हैं, अस्पताल में हैं।'
"ये क्या कह रही हैं आप ...अभी दो तीन घन्टे पहले ही तो मुझे मिली थीं ।उन्हें सुबह सुबह इतनी जल्दी तैयार देख कर मैं ने पूछा था --"मिसेज नन्दा आज इतनी जल्दी तैयार हो गई हैं ,कहीं जाना है क्या ?'
कहने लगीं--"हाँ देवी माँ के मंदिर में दीया जलाने जाना हैं।.. ड्राइवर का इंतजार कर रही हूँ ,उसे जल्दी आने को कहा था पर वह अभी आया नहीं है।'
"मैं ने पूछा भी था कि क्या कोई खास बात हैं ?'
कहने लगी " मिसेज गुप्ता आपको तो मालुम है संजू, रवीना को कितना चाहता था किन्तु रवीना के पिता गैर बिरादरी में शादी करने को तैयार नहीं थे ।तभी मैंने अपने इकलौते बेटे की खुशी के लिये मन्नत माँगी थी।अब मेरी मनोकामना पूरी हो चुकी है और दोनो हनीमून पर गए हुए हैं तो सोचा मैं यह काम भी कर आऊँ ।'... तभी उनका ड्राइवर आ गया था और वह चली गई थीं ....'
"वाह देवी माँ,मनौती पूरी करने के लिए आए अपने भक्त की यह दशा .... बहुत बुरा हुआ।कैसे हो गया यह सब, ..बच तो जायेंगी ?'
" सुना है कि मंदिर में दिया जलाते समय उनके कपडों में आग लग गई थी।..उनके ड्राइवर ने उन्हें अस्पताल पहुँचाया है, हालत नाजुक है।'
मौहब्बत
पवित्रा अग्रवाल
सुनो शादी के सात सालों मे तुम पाँच बच्चो के अब्बा बन गये और छठे के बनने वाले हो। कुछ नही किया तो दस बारह बच्चो के अब्बा हो जाओगे।हाथ भी कितना तंग रहता है...तुम बोलो तो मै इस बार आप्रेशन करा लूँ ?'
"नक्को कोइ जरूरत नही।अब्बा-अम्मी को मालुम हुआ तो फजीता करते।'
"अपने अब्बा-अम्मी की फिकर है ,बच्चों की और मेरी नही....लगता तुम मुझ से अब पहले सी मौहब्बत नही करते।'
"आप्रेशन का मौहब्बत से क्या रिश्ता है?
"रिश्ता है, बहुत बड़ा रिश्ता है...तुमको मालुम न मेरी अम्मी की मौत कैसे हुइ थी?'
" हौ,मालुम...जच्चगी के वखत हुइ थी।'
"ये भूल गये कि पन्द्रहवी जच्चगी के वखत हुइ थी।...उनको भी अब्बा आप्रेशन नही कराने दिये थे।अम्मी तो अल्ला को प्यारी हो गयी।अब्बा दूसरी को घर ला लिये,वो तो अच्छा है उसको बच्चे नही हुये।अब्बा की सारी कमाइ इतने बड़े खानदान का पेट भरने मे ही चली जाती है ।अब तक बस मेरा निकाह कर पाये हैं दूसरी बहने निकाह के इंतजार मे घर बैठ कर बुड्ढ़ी हो रही हैं।भायाँ भी इघर उधर छोटे-छाटे कामा कर रऐ,एक पैट्रोल पम्प पे, एक पान के डब्बे पे,एक चाय की दुकान पे । बिना तालीम के ऐसे ही कामा करने पड़ते।सोहबत भी अच्छी नही है, परसो अजहर स्कूटर चोरी के इल्जाम मे पकड़ा गया।तुम चाहते कि हमारे बच्चों के साथ भी ऐसा ही हो ? तुम काम पे चले जाते मै एसी हालत मे भी सिलाइ का काम करती तब भी हाथ तंग रहता।.... पता नही क्यो इस मरतबा मेरे को बहुत डर लगरा है...बुरे-बुरे ख्वावाँ आ रहे है....ऐसे वखत में अम्मी की तरह मै भी अल्ला को प्यारी हो गइ तो ?'......बात करते हुये नजमा की आँखें भर आयी और वो खामोश हो गइ।
" बस अब चुप कर...तू ठीक बोल रही है।इस जचगी के बखत डाक्टर को बोल के तेरा आप्रेशन करा देता।'
"तुम सच बोल रए...फिर तुम्हारे अब्बा- अम्मी....?'
"उनकी फिकर तू नक्को कर।'
फिर वह शरारत से बोला - "जो बीबी को करते प्यार वह आप्रेशन से कैसे करे इनकार।'
दखल1
लघुकथा
दखल
पवित्रा अग्रवाल
माँ ने बहू बेटे को तैयार हो कर बाहर जाते देख कर पूछा --"सुबह सुबह तुम दोनो कहाँ जा रहे हो ?'
"माँ अस्पताल जा रहे हैं।'
"क्यों,किस की तबियत खराब है ?'
बेटे ने सकपकाते हुए कहा --"माँ आपकी बहू फिर माँ बनने वाली है।हम टैस्ट करा कर देखना चाहते हैं कि गर्भ में लड़का है या लड़की ।'
"क्या करोगे पता कर के ?'
"करना क्या है माँ लड़की हुई तो सफाई करा देंगे।'
"तू ये क्या कह रहा है ?...आज कल लड़कियां भी किसी से कम नहीं हैं ।'
"हाँ माँ यह मैं जानता हूँ पर हमारे दो बेटियाँ तो हैं न।क्या आप नहीं चाहतीं कि हमारे एक बेटा भी हो ? ....अब मैं इतना धन्ना सेठ तो हूँ नहीं कि तीन तीन बेटियों की अच्छी परवरिश कर सकूँ।...अपने यहाँ लड़कियों की शादी में कितना दहेज चलता है क्या आप नहीं जानतीं ?...वैसे भी बाप दादों का दिया तो मेरे पास कुछ है नहीं ?'
मां ने दुखी स्वर में कहा --"तुम्हारी यह बात तो सही है बेटा कि हम जिन्दगी भर बस गुजारा ही कर पाए, ...दो कमरे का एक मकान भी नहीं बना सके ,पर ...
"पर वर कुछ नहीं माँ,मैं आपका बहुत सम्मान करता हूँ लेकिन जिन्दगी के कुछ फैसले हम खुद लेना चाहते हैं...प्लीज इसमें दखल मत दीजिए ।'
कहते हुए दोनो घर से बाहर चले गए।
माध्यम
पवित्रा अग्रवाल
प्रशासनिक अधिकारी सुभाष ने खिड़की के बाहर देखते हुए अपनी पत्नी से कहा--
"स्मृति सुनो कुछ लोग गेट से अंदर आ रहे हैं,मुझे पूछें तो कह देना घर पर नहीं हैं।'
"ठीक है '
"हाँ कहिये...किस से मिलना है ?'
"मैडम हम सुजाता स्कूल से आए हैं ।पुरस्कार वितरण सामारोह में मुख्य अतिथि बनाना चाहते हैं।'
"लेकिन मेरे पति तो अभी घर पर नहीं हैं।'
"हम आपको अतिथि बनाना चाहते हैं।'
"अरे नहीं मुझे ऐसे प्रोग्रामों से क्या लेना देना।मैं तो एक घरेलू महिला हूँ।मेरे पति एक अधिकारी हैं ,बनाना है तो उन्हें बनाऐ।'
"हर कामयाब पति की सफलता के पीछे उसकी पत्नी का हाथ होता है।...आप अपने को कम मत आँकिए ।हम सब आपको ही मुख्य अतिथि बनाने की इच्छा ले कर आये हैं।'
"ठीक है मुझे तारीख और समय बता दीजिये . एक-दो दिन का समय भी दें यदि उस दिन मैं फ्री हुई तो आपको फोन पर स्वीकृति दे दूँगी ।'
"थैक्यू मैडम हम परसों इसी टाइम आपको फोन कर लेंगे।'- कह कर वह लोग चले गए ।
पति ने राहत की साँस लेते हुए कहा--"स्मृति अच्छा किया तुम ने टाल दिया ,ये लोग मुझ से कुछ कराना चाहते हैं...सही होता तो मैं वैसे ही कर देता ....कई सिफारिशें आ चुकी हैं... .अब शायद तुम्हें माध्यम बनाना चाहते हैं।'
अच्छा किया
लघु कथा
अच्छा किया
पवित्रा अग्रवाल
बहुत दिनों बाद एक अच्छी काम वाली पा कर तनाव मुक्त हो गई थी।पर रोज सुबह आठ बजे तक आ जाने वाली लक्ष्मी दस बजे तक नहीं आइ थी...मैने बर्तन मॉजना शुरू ही किया था कि सिर पर पट्टी बाँधे वह सामने खड़ी थी --
-"हटो अम्मा हम साफ करते '
"अरे ये क्या हुआ... कहीं गिर गई क्या ?'
"नही अम्मा ..... रात में वो बच्चियों का नान्ना ( पिता ) गाँव से आया,वोइच झगड़ा किया।'
"उसी ने मारा ?'
"हौ अम्मा'
"क्यों मारा ?'
"अब क्या बोलूं अम्मा। एक छोटी सी कोठरी मे हम लोगाँ रहते,बाजू मे दो जवान बेटियाँ सोतीं। उसको नजदीक नही आने दी ... तो बोत गुस्से मे आ गिया...बच्चियों की भी शरम नही किया, बोला- "बहनो के मरद से काम चल जाता हुँगा, अब अपने मरद की क्या जरूरत'...दिल तो किया अम्मा कि उसका मुँह नोच लूँ पर बच्चियो के कारण मुँह सिल ली। मेरे कु उसका आना जरा भी पसंद नहीं ।'
"लक्ष्मी तेरा मरद है, तुझ से शादी की है उसने.. तेरे पास नही आयेगा तो किस के पास जायेगा ?'
"अरे अम्मा उसका चरित्तर आप को नहीं मालुम ,सारे ऐब हैं उसमें फिर शादी का मतलब बस यहीच होता अम्मा...जोरू और बच्चो के लिये उसका कोई फरज नही ? उसके लक्षन अच्छे होते तो हम गॉव से इस सहर मे काहे को आते। ...दो कोठरी का घर था, उसे भी बेच के खा गया। अम्मा दो औरत बच्ची हैं। इनका भी तो घर बसाना न।'
"हाँ सो तो है...फिर क्या हुआ ?'
सुबह होतेइच मेरे कू खीच के हमारी अक्का ( बहन ) के घर को लेके गया ...अक्का और उसके मरद को गलीच-गलीच बाताँ बोला और मेरे कू वहींच मारना चालू किया फिर हम और अक्का मिल के उसको चप्पल से मारे।....अम्मा पहली बार हम उस पर हाथ उठाये....पर क्या करते....?"
तभी उसकी बेटी आगयी-"अम्मा यह काम तो तुझ को बोत पहले करना था....आज तक वह हमारे या तेरे वास्ते क्या किया ? हम लोगाँ मेहनत से कमाते और वो जब भी आता मार पीट के पैसे छीन के ले जाता... ..तूने कुछ भी गलत नही किया..जो किया अच्छा किया।'
लघु कथा
डुकरिया
पवित्रा अग्रवाल
ससुराल से पीहर आई बेटी से वहाँ के हाल चाल पूछते हुए माँ ने पूछा -- "तेरी डुकरिया के क्या हाल हैं ?'
"कौन डुकरिया माँ ?'
"अरे वही तेरी सास ।'
"प्लीज माँ उन्हें डुकरिया मत कहो ...अच्छा नहीं लगता ।'
"मैं तो हमेशा ही ऐसे कहती हूँ, इस से पहले तो तुझे कभी बुरा नहीं लगा...अब क्या हो गया ?'
"इस डुकरिया शब्द की चुभन का अहसास मुझे तब हुआ जब एक बार अपनी सास को भी आपके लिए इसी शब्द का स्तमाल करते सुना था...यद्यपि उन्हों ने मेरे सामने नहीं कहा था।'
जो राम रचि राखा
लघु कथा
जो राम रचि राखा
पवित्रा अग्रवाल
"बेटा यह शादी नहीं हो सकती ।'
"क्यों पापा ? वह हमारी जाति की नहीं है,इस लिए ?'
"एक कारण यह भी हो सकता था पर तुम्हारी खुशी के लिए हम इस शादी के लिए तैयार हो गए थे। पर तुम दोनो की जन्म पत्री नहीं मिल रही है।पंडित जी ने कहा है कि लड़की के भाग्य में वैधव्य का योग है... इसलिए उन्होंने इस विवाह से इंकार कर दिया है और यह बात सुन कर हम भी हाँ कैसे कर सकते ?'
"पापा हमारा पढ़ा लिखा परिवार है... इन दकियानूसी बातों पर आप विश्वास करते हैं ?
"हाँ बेटा इस में तो हम विश्वास करते हैं।'
पापा यदि ये पंडित ऐसे किस्मत पढ़ सकते तो इनके परिवार में कोई बेटी या बहू विधवा नहीं होती। ... आपको तो पता है न कि पिछले वर्ष ही इन पंडित जी की बेटी शादी के एक साल बाद ही विधवा हो गई थी।क्या इन्होंने कुंडली नहीं मिलाई होगी ?'
"बेटा तू बहस बहुत करता है।'
"पापा मैं बहस नहीं कर रहा, सच्चाई के उदाहरण दे कर आप को ऐसे बेतुके अंधविश्वासों से बचाने की कोशिश कर रहा हूँ। ...प्लीज पापा ।'
"ठीक है बेटा दिल पर पत्थर रख कर स्वंय को यह कह कर समझा लेंगे कि होवत वही जो राम रचि राखा ।'
" थैंक यू,यह हुई न मेरे पापा वाली बात '
वाह देवी माँ
लघु कथा
वाह देवी माँ
पवित्रा अग्रवाल
"मिसेज गुप्ता कुछ सुना आपने...मिसेज नन्दा बुरी तरह जल गई हैं, अस्पताल में हैं।'
"ये क्या कह रही हैं आप ...अभी दो तीन घन्टे पहले ही तो मुझे मिली थीं ।उन्हें सुबह सुबह इतनी जल्दी तैयार देख कर मैं ने पूछा था --"मिसेज नन्दा आज इतनी जल्दी तैयार हो गई हैं ,कहीं जाना है क्या ?'
कहने लगीं--"हाँ देवी माँ के मंदिर में दीया जलाने जाना हैं।.. ड्राइवर का इंतजार कर रही हूँ ,उसे जल्दी आने को कहा था पर वह अभी आया नहीं है।'
"मैं ने पूछा भी था कि क्या कोई खास बात हैं ?'
कहने लगी " मिसेज गुप्ता आपको तो मालुम है संजू, रवीना को कितना चाहता था किन्तु रवीना के पिता गैर बिरादरी में शादी करने को तैयार नहीं थे ।तभी मैंने अपने इकलौते बेटे की खुशी के लिये मन्नत माँगी थी।अब मेरी मनोकामना पूरी हो चुकी है और दोनो हनीमून पर गए हुए हैं तो सोचा मैं यह काम भी कर आऊँ ।'... तभी उनका ड्राइवर आ गया था और वह चली गई थीं ....'
"वाह देवी माँ,मनौती पूरी करने के लिए आए अपने भक्त की यह दशा .... बहुत बुरा हुआ।कैसे हो गया यह सब, ..बच तो जायेंगी ?'
" सुना है कि मंदिर में दिया जलाते समय उनके कपडों में आग लग गई थी।..उनके ड्राइवर ने उन्हें अस्पताल पहुँचाया है, हालत नाजुक है।'
मौहब्बत
पवित्रा अग्रवाल
सुनो शादी के सात सालों मे तुम पाँच बच्चो के अब्बा बन गये और छठे के बनने वाले हो। कुछ नही किया तो दस बारह बच्चो के अब्बा हो जाओगे।हाथ भी कितना तंग रहता है...तुम बोलो तो मै इस बार आप्रेशन करा लूँ ?'
"नक्को कोइ जरूरत नही।अब्बा-अम्मी को मालुम हुआ तो फजीता करते।'
"अपने अब्बा-अम्मी की फिकर है ,बच्चों की और मेरी नही....लगता तुम मुझ से अब पहले सी मौहब्बत नही करते।'
"आप्रेशन का मौहब्बत से क्या रिश्ता है?
"रिश्ता है, बहुत बड़ा रिश्ता है...तुमको मालुम न मेरी अम्मी की मौत कैसे हुइ थी?'
" हौ,मालुम...जच्चगी के वखत हुइ थी।'
"ये भूल गये कि पन्द्रहवी जच्चगी के वखत हुइ थी।...उनको भी अब्बा आप्रेशन नही कराने दिये थे।अम्मी तो अल्ला को प्यारी हो गयी।अब्बा दूसरी को घर ला लिये,वो तो अच्छा है उसको बच्चे नही हुये।अब्बा की सारी कमाइ इतने बड़े खानदान का पेट भरने मे ही चली जाती है ।अब तक बस मेरा निकाह कर पाये हैं दूसरी बहने निकाह के इंतजार मे घर बैठ कर बुड्ढ़ी हो रही हैं।भायाँ भी इघर उधर छोटे-छाटे कामा कर रऐ,एक पैट्रोल पम्प पे, एक पान के डब्बे पे,एक चाय की दुकान पे । बिना तालीम के ऐसे ही कामा करने पड़ते।सोहबत भी अच्छी नही है, परसो अजहर स्कूटर चोरी के इल्जाम मे पकड़ा गया।तुम चाहते कि हमारे बच्चों के साथ भी ऐसा ही हो ? तुम काम पे चले जाते मै एसी हालत मे भी सिलाइ का काम करती तब भी हाथ तंग रहता।.... पता नही क्यो इस मरतबा मेरे को बहुत डर लगरा है...बुरे-बुरे ख्वावाँ आ रहे है....ऐसे वखत में अम्मी की तरह मै भी अल्ला को प्यारी हो गइ तो ?'......बात करते हुये नजमा की आँखें भर आयी और वो खामोश हो गइ।
" बस अब चुप कर...तू ठीक बोल रही है।इस जचगी के बखत डाक्टर को बोल के तेरा आप्रेशन करा देता।'
"तुम सच बोल रए...फिर तुम्हारे अब्बा- अम्मी....?'
"उनकी फिकर तू नक्को कर।'
फिर वह शरारत से बोला - "जो बीबी को करते प्यार वह आप्रेशन से कैसे करे इनकार।'
दखल1
लघुकथा
दखल
पवित्रा अग्रवाल
माँ ने बहू बेटे को तैयार हो कर बाहर जाते देख कर पूछा --"सुबह सुबह तुम दोनो कहाँ जा रहे हो ?'
"माँ अस्पताल जा रहे हैं।'
"क्यों,किस की तबियत खराब है ?'
बेटे ने सकपकाते हुए कहा --"माँ आपकी बहू फिर माँ बनने वाली है।हम टैस्ट करा कर देखना चाहते हैं कि गर्भ में लड़का है या लड़की ।'
"क्या करोगे पता कर के ?'
"करना क्या है माँ लड़की हुई तो सफाई करा देंगे।'
"तू ये क्या कह रहा है ?...आज कल लड़कियां भी किसी से कम नहीं हैं ।'
"हाँ माँ यह मैं जानता हूँ पर हमारे दो बेटियाँ तो हैं न।क्या आप नहीं चाहतीं कि हमारे एक बेटा भी हो ? ....अब मैं इतना धन्ना सेठ तो हूँ नहीं कि तीन तीन बेटियों की अच्छी परवरिश कर सकूँ।...अपने यहाँ लड़कियों की शादी में कितना दहेज चलता है क्या आप नहीं जानतीं ?...वैसे भी बाप दादों का दिया तो मेरे पास कुछ है नहीं ?'
मां ने दुखी स्वर में कहा --"तुम्हारी यह बात तो सही है बेटा कि हम जिन्दगी भर बस गुजारा ही कर पाए, ...दो कमरे का एक मकान भी नहीं बना सके ,पर ...
"पर वर कुछ नहीं माँ,मैं आपका बहुत सम्मान करता हूँ लेकिन जिन्दगी के कुछ फैसले हम खुद लेना चाहते हैं...प्लीज इसमें दखल मत दीजिए ।'
कहते हुए दोनो घर से बाहर चले गए।
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